Friday, January 14, 2011

कुछ सकारात्मक परिवर्तन...पत्रकारिता फिर चैम्पियन

                                  अगर कहा जाये पत्रकारिता का स्वरूप बदल रहा है , तो गलत नहीं होगा ! एक और जहा सब कुछ आधुनिक  हो रहा है  वहीँ  पत्रकारिता एक गलत दिशा में लगातार बढती जा रही है लेकिन हर कोई एक दूसरे पर आरोप मढ़ने के अलावा कोई ठोस कदम उठाता नजर नहीं आ रहा ! प्रिंट मीडिया के बारे में लोगों में ये धारणा घर कर गई है कि अख़बार में तो सेलरी कम ही मिलती है , इन्हें तो बाहर से पैसा मिलता है !एक दिन मेरे एक बड़े भाई ने मुझसे पूछा कि हाँ भाई अब तो पैसा  बंधा आने लगा होगा तो सच मानो मुझे बहुत शर्म आई ! मैंने ऐसे बहुत से पत्रकार देखें है जो दों मूली और दों गाज़र पर ही बिक जाते है ! पत्रकारों पर अब जनता विश्वास करने को तैयार नहीं है ! एक जगह पढ़ा था कि ख़बरों के रंगों में किसी पार्टी का रंग नहीं होना चहिये! इस बात में कोई दो राय नही है कि खबर का मज़ा तभी आता है जब खबर पूरी तरह से निष्पक्ष हो ! लेकिन विज्ञापन कि चसक ने तो खबरों को काफी पीछे छोड़ दिया है जिससे ये  चौथा खंभा अब खासा दरक गया है। ! किसी भी खबर को विज्ञापन के लिए काट दिया जाता है ! लेकिन खबर के लिए कभी भी विज्ञापन छोटा तक नहीं किया जाता ! विज्ञापन के बिना अख़बार नहीं चलाया जा सकता लेकिन विज्ञापन को खबर कि जगह प्राथमिकता देना क्या ऊचित है ! लेकिन  विज्ञापन का जिन्न पत्रकारिता के  पतन का जिम्मेवार नहीं है ! इसका मुख्य कारण तो पत्रकारों का  कार्पोरेटर बन जाना है ! साफ़ शब्दों में कहा जाये तो दलाली करना ! एक पत्रकार कि कमाई को कोई भी सही नज़रों से नहीं देखता इसका यही कारण है कि इस पवित्र पेशे की के आड़ में अवैध उगाही और दलाली  करना ! ऐसे दलाल पत्रकारों के खिलाफ ठोस कदम उठाने की जरुरत है ! विज्ञापन तो अख़बार की जरुरत है लेकिन क्या अख़बार की आड़ में दलाली करते पत्रकार भी ? 
               चुनावों में खबर उसकी ही छपती है जो विज्ञापन और पैसा  देता है ! पहले ही ठेका ले लिया जाता है पूरे चुनाव का ! फिर आपकी मर्जी जैसी चाहे खबर लगवाओ ! जिसे पेड न्यूज़ का नाम भी दिया गया है !   इसे ख़त्म करने के लिए बहुत से बड़े पत्रकारों ने आवाज भी उठाई लेकिन उनकी  आवाज दब गई ! बिना विज्ञापन के अख़बार चला पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, लेकिन ख़बरों से समझोता क्या ऊचित है ?    
                         आज मैं एक बहुत बड़े अख़बार के पत्रकार रह चुके एक व्यक्ति  कि बात सुन सन्न रह गया ! उनका कहना था कि अगर पत्रकार ही रहता तो हथ में कटोरा आ जाता!  सही टाइम  पर अपना व्यपार कर लिया नहीं तो आज इस फिएल्ड में तो बस शोषण ही होता है ! सच कहों तो मुझे उनकी बात  सुनकर पसीना आ रहा था ! वो पसीना में एक डर छुपा था , मैं पत्रकारिता  में  ही अपने आप को साबित करना चाहता हूँ ! लेकिन उनकी बात सुनकर मेरा विश्वास डगमगाया  तो नही लेकिन मन एक डर जरुर घर कर गया ! उन्होंने कहा कि देहात में पत्रकारों को अख़बार कि तरफ से मात्र खर्चा पानी ही मिलता है !यही कारण है कि ऐसे  पत्रकार अख़बार को ढाल और कलम को हथियार बना कर इधर उधर से पैसा कमाना शुरू कर देते है !उनकी बातों सच्चाई के साथ साथ एक टीस भी महसूस हुई !                         मैंने बहुत बार सुना है कि ये फिल्ड बाहर से जितना साफ नजर आता है ,अंदर से उतना ही गन्दा है !आखिर ऐसा क्या हो गया कि दूसरों कि खामियों को उजागर करने वाले अपनी खामियों को क्यों दूर नहीं कर पा रहे है ? आज इस विभाग में कुछ परिवर्तन करने की आवश्यकता है , जिससे एक पत्रकार बस पत्रकार ही रहे दलाल न बने !

No comments:

Post a Comment