Monday, January 17, 2011

विचार क्रांति, राजनीति से हुई गुम ......


जिसकी लाठी उसकी भैंस की तरह  जिसकी कुर्सी उसके विचार
एक जमाना था जब अधिकांश राजनेताओं में कुछ विचारधारा हुआ करती थी! जिस विचार धारा के लिए वो अपना पूरा जीवन अर्पण कर देते थे ! लेकिन आज हर कोई अपना उल्लू सीधा करने में लगा हुआ है ! अब तो जब चाहो कोई भी विचार धारा अपना ग्रहण कर लों , कोई फर्क नहीं पड़ता ! आज नेता विचार धारा नहीं कुर्सी को देखते है कि किस पार्टी में मजबूत कुर्सी उनके हाथ आ सकती  है ! उसी कुर्सी के लालच का जीता - जागता उदारहण अगर कल्याण सिंह का मुलायम सिंह के साथ जाने का किया जाये तो गलत नहीं होगा ! दोनों कि विचार धारा हमेशा से ही एक दूसरे कि विरोधी रही लेकिन फिर गठजोड़ कर कुछ दिन तो चला ही  लिए ! इस दौरान कल्याण सिंह ने अपनी भगवा विचार धारा का त्याग सा कर दिया था लेकिन मुलायम सिंह ने जैसे ही कल्याण सिंह का हाथ छोड़ा एक दम फिर कल्याण सिंह के दिमाग में मंदिर कि घंटिया बजने लगी !
                                                    अब अमर सिंह जो राजनीतिक पार्टी  से ज्यादा फिल्मों की पार्टियों आदि में नज़र आते रहे है ! कभी मुलायम और अमर कि जोड़ी जय और वीरू से काम नहीं थी लेकिन आज वो सौदागर के दिलीप और राजकुमार कि तरह आमने सामने है ! अमर मुलायम  सिंह पर आय दिन निशाना साधते रहते है ! जब तक अमर सपा में रहे तो सब ठीक था लेकिन बात बिगड़ी तो मुलायम सिंह में इतने खोट गिना रहे है कि गिनना दूभर है !जरा सोचिये अगर मुलायम  गलत थे तो इतने साल तक उन्होंने गलत आदमी का साथ क्यों दिया ?! अमर मुलायम को जेल तक कि सैर कराने तक का ख्वाब बुन रहे है लेकिन मुलायम सिंह के हर काम में अमर की हिस्सेदारी से कौन  वाकिफ  नहीं है ! 
                      जिस विचार धाराओं से तमाम राजनितिक दलों का निर्माण किया गया था आज सत्ता को नज़र भर देखने के लिया उनका मतलब ही बदल गया है !अगर आज गठबंधन कि सरकार दो कदम भी मुश्किल से चल पाती है तो उसका कारण विचार धारा का मिलन नहीं बल्कि कुर्सी कि नापसंदगी होता है ! आज कोई भी व्यक्ति नेता बनता है इस और कुछ विचार करता है तो  देश के विकास के लिए नहीं बल्कि मात्र अपने और अपने परिवार के लिए ! नेताओं के विकास के चक्कर में जनता का कुछ भला हो जाये तो सही नहीं तो चुनाव तक जय राम जी कि ! चुनाव के समय कुछ नए वादे ,कुछ नए ख्याली पुलाव जनता के मन में पका देते है ! आज वोट बैंक कि राजनीति समाज के असल मुद्दों पर इस कदर हावी है कि अधिकांश  योजनायें कागजों में ही दम तोड़ रही है ! सरकार की टांग खिचाई करने के लिए विपक्ष ने तो आज कल संसद ही ठप करके रखी है !   राजनीति का हो रहा व्यापारीकरण देश और समाज के लिए खतरे कि घंटी है लेकिन कीड़ा एक पेड़ पर नहीं पूरे बाग में ही लगा है !
           अगर आज़ादी के समय की और गौर किया जाये तो  प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र शर्मा ने जवारलाल नेहरु को इस पद  के लिए इंकार कर दिया था लेकिन सरदार पटेल ने जिद्द कर उन्हें देश के प्रथम राष्ट्रपति  बनवा इतिहास में उनका नामे दर्ज कराया ! दरसल जवारलाल राजेंद्र शर्मा को राष्ट्रपति बनाने के पक्ष में नहीं थे वो दक्षिण पंथी विचार वाले राज गोपाल चारी को राष्ट्रपति बनवाना  चाहते थे ! जब जवारलाल नेहरु ने राजेंद्र शर्मा से पूछा क्या आप राष्ट्रपति पद  के उम्मीदवार है तो उन्होंने मना कर दिया और इस बात को नेहरु जी कागज पर लिखा लिया! उन्होंने केवल इसलिए मना कर दिया की पता होने के बावजूद नेहरु जी उनसे सवाल किया और अपने मुह से वो इस बात को नहीं कह सके की वो भी उम्मीदवार है ! १९४२ में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए सरदार पटेल का नाम तय किया गया तो उन्होंने मना कर दिया ! उनके मना करने के बाद जवाहर लाल नेहरु को अध्यक्ष बनाया गया ! और  आज  ग्राम प्रधान या किसी चुनावी टिकट तक के लिए भाई भाई की इज्ज़त उतरने में तनिक भी देर  नहीं लगाता! आज ऐसी   सोच वाले नेताओं की बहुत  सख्त जरुरत है जो चरमरायी राजनीति और मौकापरस्त नेताओं से देश को उबार सके ! वो तो वापस नहीं आगे आ सकते , युवाओं  को ही राजनीति में
 आगे आकर फिर से एक विचार क्रांति लानी होगी !

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