Wednesday, January 25, 2012

अब ‘राजनीति शास्‍त्र’ नहीं ‘नेता शास्‍त्र’ चाहिये

हर देश में नेता नाम के प्राणी पाए जाते हैं. उनका तुलनात्मक अध्ययन बड़ा मजेदार होगा. राजनीति विज्ञान पढ़ानेवालों को यह काम कर करना चाहिए. कहते हैं कि विश्वविद्यालयों में ‘राजनीतिशास्‍त्र’ यानी ‘पोलिटिक्ल साइंस’ नाम का जो विषय है, वो काफी पिट रहा है. उसको पढ़नेवाले कम हो रहे हैं. उसकी कोई उपयोगिता नहीं रह गयी है. आजकल विश्वविद्यालयों में इसे पढ़ने वही जाते हैं जिनको किसी और विषय में प्रवेश नहीं मिलता. विश्वविद्यालयों में राजनीति शास्‍त्र के प्राध्यापकों की हालत हिंदी के अध्यापकों से भी ज्यादा खस्ता है. उनको टेलीविजन चैनलों पर भी नहीं बुलाया जाता और आज के जमाने का ध्रुवसत्य यह है कि जिसे टीवी चैनल नहीं बुलाया जाता उसके बारे में दुनिया को शक होता है कि वो बुद्धिजीवी है भी या नहीं. कहने का मतलब ये कि ‘सोशियोलॉजी’ या ‘बाॅयोलोजी’ की तरह ‘लीडरोलाॅजी’ यानी ‘नेताशास्‍त्र’ नाम का एक नया विषय ईजाद किया जा सकता है. दुनिया भर में लोकतंत्र के फैलने का एक नतीजा ये निकला है कि तरह तरह के नेता पैदा हो रहे हैं. भारत जैसे देश में तो यह फर्क करना मुश्किल हो गया है कि गुंडा, दलाल और नेता में कितना फर्क है. फर्क है भी या नहीं? लेकिन दूसरे देश भी कम नहीं है. इटली के प्रधानमंत्राी सिल्वियो बर्लुस्कोनी ने तो दुनिया के कई नेताओं को अपने यौन-दिग्विजय से पीछे छोड़ दिया है. उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का अध्ययन ‘नेताशास्‍त्र’ को एक दिलचस्प और लोकप्रिय विषय बना देगा. दुनिया के इतिहास में बर्लुस्कोनी जैसा नेता नहीं हुआ. मामला चाहे सेक्स स्कैंडल का हो या अवैध तरीके से पैसा कमाने का, बर्लुस्कोनी अद्वितीय हैं. उन्होंने ये साबित कर दिया है कि कासानोवा की परंपरा इटली में खत्म नहीं हुई है. हालांकि पहले का कासानोवा नेता नहीं बन सका था. आज का कासानोवा नेता बन गया है. नए जमाने में कासानोवा भी नेता बन सकता है.