Wednesday, January 25, 2012

अब ‘राजनीति शास्‍त्र’ नहीं ‘नेता शास्‍त्र’ चाहिये

हर देश में नेता नाम के प्राणी पाए जाते हैं. उनका तुलनात्मक अध्ययन बड़ा मजेदार होगा. राजनीति विज्ञान पढ़ानेवालों को यह काम कर करना चाहिए. कहते हैं कि विश्वविद्यालयों में ‘राजनीतिशास्‍त्र’ यानी ‘पोलिटिक्ल साइंस’ नाम का जो विषय है, वो काफी पिट रहा है. उसको पढ़नेवाले कम हो रहे हैं. उसकी कोई उपयोगिता नहीं रह गयी है. आजकल विश्वविद्यालयों में इसे पढ़ने वही जाते हैं जिनको किसी और विषय में प्रवेश नहीं मिलता. विश्वविद्यालयों में राजनीति शास्‍त्र के प्राध्यापकों की हालत हिंदी के अध्यापकों से भी ज्यादा खस्ता है. उनको टेलीविजन चैनलों पर भी नहीं बुलाया जाता और आज के जमाने का ध्रुवसत्य यह है कि जिसे टीवी चैनल नहीं बुलाया जाता उसके बारे में दुनिया को शक होता है कि वो बुद्धिजीवी है भी या नहीं. कहने का मतलब ये कि ‘सोशियोलॉजी’ या ‘बाॅयोलोजी’ की तरह ‘लीडरोलाॅजी’ यानी ‘नेताशास्‍त्र’ नाम का एक नया विषय ईजाद किया जा सकता है. दुनिया भर में लोकतंत्र के फैलने का एक नतीजा ये निकला है कि तरह तरह के नेता पैदा हो रहे हैं. भारत जैसे देश में तो यह फर्क करना मुश्किल हो गया है कि गुंडा, दलाल और नेता में कितना फर्क है. फर्क है भी या नहीं? लेकिन दूसरे देश भी कम नहीं है. इटली के प्रधानमंत्राी सिल्वियो बर्लुस्कोनी ने तो दुनिया के कई नेताओं को अपने यौन-दिग्विजय से पीछे छोड़ दिया है. उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का अध्ययन ‘नेताशास्‍त्र’ को एक दिलचस्प और लोकप्रिय विषय बना देगा. दुनिया के इतिहास में बर्लुस्कोनी जैसा नेता नहीं हुआ. मामला चाहे सेक्स स्कैंडल का हो या अवैध तरीके से पैसा कमाने का, बर्लुस्कोनी अद्वितीय हैं. उन्होंने ये साबित कर दिया है कि कासानोवा की परंपरा इटली में खत्म नहीं हुई है. हालांकि पहले का कासानोवा नेता नहीं बन सका था. आज का कासानोवा नेता बन गया है. नए जमाने में कासानोवा भी नेता बन सकता है.


Thursday, January 27, 2011

भ्रष्टाचार की फैलती जड़ों से लोकतंत्र खोकला




2010 कुल मिलकर घोटालों के नाम रहा और विपक्ष को सरकार पर तीर चलाने का पूरा मौका मिला ! 2-जी ,कामनवेल्थ तो कभी आदर्श सोसाइटी घोटाला , घोटाला ही घोटाला ! इनसे पहले कभी कफन घोटाला, कभी चारा – भूसा घोटाला, कभी दवा घोटाला, कभी ताबूत घोटाला,बोफोर्स टॉप घोटाला  तो कभी खाद घोटाला !लेकिन मानो रात के बाद सुबह की उम्मीद के बाद भी घोटाला!नए ताज़ा तरीन  मामलें खुले और पता चला की  भ्रष्टाचार की जड़े  कितने फ़ैल चुकी है जिसने लोकतंत्र को  को खोकला कर दिया है  ! हमारे देश में समस्या तो मानो थोक के भाव है जैसे बेरोजगारी , गरीबी और साक्षरता में भी काफी पिछड़ा हुआ है ! अधिकांश घोटालों का श्रेय अगर कांग्रेस को दिया जाये तो गलत नहीं होगा ! लेकिन सरकार और विपक्ष की लड़ाई को  भ्रष्टाचार  की जड़ों को मजबूत करने का   दो  योजना से दिल्ली कि कुर्सी से गायब भाजपा तो बस मनमोहन सरकार के पीछे पड़ी हुई है कि किसी तरह से जो सपना सत्ता पाकर ना पूरा हुआ उससे विपक्ष में ही बैठ के पूरा किया जाये ,वो सपना है मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री साबित करना! कमजोर शब्द मनमोहन जी के लिए कतई नया नहीं है , उन्हें तो हमेशा एक अच्छे अर्थशास्त्री के तौर पर सोनिया गाँधी कि रबर कि मोहर समझा गया !लेकिन कई मोके आये जब मनमोहन ने खुद को साबित कर दिया , जिससे भाजपा को करार झटका लगा! 2009 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सरदार मनमोहन को कमजोर प्रधानमंत्री बताकर कुर्सी कब्जाना चाहे , तो कांग्रेस ने भी फिर से  प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ही प्रमोट किया ! और परिणाम हम सबके सामने !


                  लेकिन २०१० तो मानो कांग्रेस के लिए नयी नयी मुसीबत लेकर आया! पूरे साल खलबली मची रही और कही मंत्री तो कही मुख्यमंत्री इस्तीफा दे रहे है ! कांग्रेस का कोई सफेदपोश कही तो कोई कही नए नए पचड़ों में नज़र आ रहे है ! लेकिन एक क्षमता तो कमाल की है, इस सरकार में , केवल  प्याज बीजेपी की सरकार को गिरा दिया लेकिन यहाँ दावा से लेकर दारू तक सब कुछ महंगा और घोटालों की बाढ़ है , लेकिन सरकार का कुछ नहीं बिगड़ा! २०११ में देखना है देश को हज़म करने पर तुले कितने और चेहरों से नकाब उतरता है ! लेकिन जिन लोगों के चेहरे से नकाब उतरा है उन पर क्या करवाई होती है !हाल ही में कामनवेल्थ गमेस के आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी की कुर्सी जैसे हे गयी , उन्होंने तो सरकार को भी अपनी चपेट में ले लेने के संकेत दे दिए ! एक बात तो तय है की कलमाड़ी के मुह से निकलने वाले शब्द केंद्र सरकार के लिए तीर का काम करंगे और एक- दो  सिपाहों के लगना भी निश्चित है ! आदर्श सोसायटी घोटाला मामले में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का चेहरा बदला जा चुका है ! २-जी स्पेक्ट्रम मामले भी रजा की कुर्सी चली गयी और चेहरों का परत दर परत खुलना जारी है ! लेकिन फिर भी कोई ऐसा कदम नहीं उठाया गया जिससे भ्रष्टाचारियों को एक सबक मिले ! ऐसे तो कोई लगाम नहीं कसी जा सकती! किसी ने बोल कहे अच्छे लगे और सच भी ..उन्होंने कहा कि सब कुछ  करने वाले  भी ये और कराने  वाले भी ये..जाँच करने वाले भी ये और कराने  वाले भी ये , फसने वाले भी ये और फ़साने वाले भी ये, सफ़ेद पोश पहनने वाले भी ये और कीचड़ उछालने वाले भी ये !                           
              सरकार का अब  तक उठाये गए किसी भी कदम या किसी भी बयान से नहीं लगता की घोटालों की रस्म कभी छूट  पायेगी और ना ही कभी ऐसा दशहरा आयेगा जिस दिन  भ्रष्ट्राचार  का खात्मा  हो सके ! सरकार ने जो लोकपाल बिल  का मसौदा  तैयार किया है वो भी केंद्र सरकार के हाथों से कतई परे नहीं है , जैसे अन्य जाँच एजेंसियों पर केंद्र और राज्य सरकार  के लिए काम करने का आरोप लगता रहता है ! ऐसा लोकपाल बिल  के लिए तैयार किये गए मसौदे में लगता है , क्यूंकि ना तो लोकपाल को जाँच शुरू करने का अधिकार होगा और ना ही जनता की शिकायतों को दर्ज करने का ! शिकायत होगी लोकसभा अध्यक्ष से और जिन शिकायतों पर पर स्पीकर की मोहर होगी उन शिकायतों पर ही लोकपाल प्रकाश दल सकेंगे ! और लोकसभा अध्यक्ष किसके हाथ का मोहरा है और मोहर होती है ये किसी से छिपा नहीं है ! आखिर सरकार कोई भी हो और विपक्ष में भी चाहे कोई हो , पिसेगी तो जनता ही ! सदन का ठप रहना भी एक विचार योग्य मुद्दा है , जिस पर महामहिम ने भी चिंता व्यक्त की !क्या सरकार को घेरने के लिए सदन की कारवाही ठप कर देना ही एक मात्र चारा रह गया है ?
ऐसा नहीं है कि केवल भ्रष्टाचार  के लिए सरकार और सरकारी तंत्र ही जिम्मेदार , बल्कि जनतंत्र कि भागीदारी भी कम नहीं है ! क्यूंकि  जनतंत्र आम आदमी का बहाना लेकर रिश्वत देता और शोषण सहता है ! लेकिन आम आदमी की भागीधारी के बिना इस विकराल समस्या का समाधान मुमकिन दिखाई नहीं पड़ता ! हर आदमी जल्दी है और किसी के मांगने से पहले ही गाँधी से को उनके हाथ में थमा देते है ! थोडा मुश्किल जरुर है लेकिन जनतंत्र चाहे तो भ्रष्टतंत्र  को जड़ से उखाड़ फेंक सकता है !

 

Wednesday, January 26, 2011

देश के लुटेरों को माफ़ी ??

कहा जाता है कि हमारा देश सोने  की चिड़िया था लेकिन अंग्रेज आये और सारा धन लूट कर ले गए ! लेकिन अगर सोचा जाये तो हमे अंग्रेजों से ज्यादा अपनों ने ही ज्यादा लूटा !भारत का करीब   विदेशी बैंकों में कई लाख करोड़ों रुपया जमा होने कि बात काफी लम्बे समय से कही जा रही है  ! काला धन कि कुछ जानकारी सरकार को मिल भी चुकी है !जमा कला धन पर कोर्ट और विपक्ष का दबाव सरकार पर बढता ही जा रहा है ! लेकिन सरकार अभी देश को लूटने वालों को किसी परेशनी में डालने के मूड में कतई दिखाई नहीं पड़ रही है !काले धन पर कांग्रेस माफ़ी योजना लाने पर भी विचार कर रही है ! मतलब साफ़ जब तक चाहे चोरी करो, देश को लूट कर विदेश ले जाओ और अगर पकडे जाओ तो माफ़ी !लेकिन सरकार  को एक बात विचार करना ही होगा कि अगर लुटेरों को माफ़ कर दिया गया तो क्या कभी भ्रष्टाचार में कोई गिरावट आ सकती है !अगर करोडों और अरबों रूपये लूटने वालों को माफ़ी के बारे में सरकार विचार कर रही है तो छोटी छोटी लूट में सजा काट रहे अपराधियों को तो ईनाम भी मिलना चाहिए !
                उत्तर प्रदेश के एक साप्ताहिक अख़बार में छापी एक खबर पर अगर गौर किया जाये तो उसमे विदेशों में काला धन जमा करने वाले भारतीयों का नाम और किसकी कितनी संपत्ति और किसका क्या कोड नम्बर सब जानकारी इस अख़बार में छापी है ! लेकिन उस अख़बार में काला धन जमा कराने में गाँधी परिवार को अव्वल नम्बर  पर रखा गया है और पीएम इन वेटिंग को इनके बाद तरजीह दी गयी है ! साथ ही केंद्रीय मंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का भी चिटठा खोलने का दावा किया गया है !लेकिन अभी तक इस बात के पर्याप्त सुबुत सामने नहीं आये है ! चर्चित वेब साईट विकिलीक्स ने भी एक स्विस बैंक अकाउंट की जानकारी वाली सीडी हाथ लगने की लगने  कि बात कही थी लेकिन अभी तक असान्जे कोई तहलका नहीं मचाया है ! लेकिन अमेरिका को हिला देने वाली विकिलीक्स ने सफेदपोशों समेत कईयों कि रातों कि नींद तक उड़ा दी है ! लेकिन माफ़ी योजना कि तैयारी उनको कुछ रहत देने वाली जरुर है !   वित्त मंत्री प्रणव दा ने तो साफ़ साफ़ लुटेरों के नाम बताने से इंकार कर दिया है ! उन्होंने इस बात के पीछे  अंतर्राष्ट्रीय संधि का  तर्क दिया है कि अगर वो कला धन जमा करने वालों के नाम सार्वजनिक करने पर दूसरे देश कालेधन कि जाँच में उनका सहयोग बंद कर सकती है ! उन्होंने ये भी कहा कि कला धन का जो अनुमान है वो पूरी तरह से विश्वसनीय नहीं है , और अगर आयकर विभाग कि जाँच के बाद मुकदमा दायर होगा तो ये नाम सामने आ सकते है ! कोर्ट ने साफ़ कहा है की ये मामला केवल  आयकर चोरी का नही है , ये देश को लूटने का भी है ! इसलिए कोर्ट ने काला धन जमा करने वालों का पूरा चिटठा खोलने को कहा था ! प्रणव दा ने कहा कि करीब ७७ प्रतिशत काली कमाई ट्रांसफर प्राइसिंग  के जरिये पैदा हो रही है !कहीं  कालेधन पर हो रही गहमागहमी केवल मात्र दिखावा मात्र तो नहीं !  बीते वर्ष अमेरिका  ने स्विस बैंक से करीब ४०४५ बैंक खातों के बारे में जानकारी जुटाने में कामयाबी पाई थी ! सरकार का माफ़ी योजना का उपाय कोई स्थायी हल नहीं साबित हो सकता ! अगर सरकार ने ठोस कदम ना उठाये तो और विगत परिणाम सामने आ सकते है !
               

Saturday, January 22, 2011

............अलगाववादियों को पसीने आ जाये


             भाजयुमो (भारतीय जनता युवा मोर्चा ) का २६ जनवरी को श्रीनगर लाल चौक पर तिरंगा फहराना का संकल्प और उमर अब्दुल्ला ने  भाजपाइयों को रोकने के लिए किये पुख्ता इंतजाम.....ये खबरे आज हर अख़बार की सुर्खियाँ बटोर रही है !भाजपा  को तिरंगा फहराने से रोकने के लिए ऐसा नहीं है केवल हमारें उमर अब्दुल्ला साहब ही चुनौती दे रहे है, बल्कि साथ में जेकेएलएफ ( जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट ) ने भी रोकने  की चेतावनी दी है ! आखिर कैसे ये चंद देशद्रोही हमारे राष्ट्र ध्वजा   का अपमान कर सकते है? क्या करें जब अपना ही सिक्का खोटा( उमर ) तो किसी को क्या कहे  !  लेकिन  भाजपा युवा मोर्चा के कार्यकर्ता बिल्कुल भी झुकने के मूड में नहीं है ! हुर्रियत कांफ्रेस के प्रमुख मीरवाइज   ने भी इसे दिन मार्च टू लाल चौक का ऐलान किया है ! अलगाववादी नेताओं का कहना है कि बीजेपी ने अपनी हुकुमत में कभी यहाँ झंडा नहीं फहराया तो फिर अब क्या जरुरत आ पड़ी ! उन्होंने भाजपा के इस कदम को  कश्मीर के खिलाफ जंग का ऐलान बताया  ! वहीं उमर बीजेपी के इस कदम को कश्मीर में फिर से आग भड़काने वाला बताया  ! जो देश के ना तो जिम्मेदार व्यक्ति का और  ना ही देश के एक महत्वपूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री का बयान  है ! ये बयान तो किसी देश द्रोही का प्रतीत होता है ! उमर ने  करीब-करीब एकता रैली को लाल चौक पर ना पहुचने देने के लिए अपनी कमर कस  तो ली है लेकिन शायद वो  युवा शक्ति से लबरेज रैली  की ताक़त को नज़रन्दाज कर रहे   है ! उमर ये भूल रहे है  कि एकता रैली चाहे कोई भी पार्टी निकल रही है हो, उसने  अपने ही देश के किसी हिस्से में, देश का ही  झंडा फहराने का संकल्प लिया न कि भाजपा के ! उमर पर भी वही मामला दर्ज होना चाहिए जो हाल ही में आजम खान पर हुआ है  !आजम साहब ने तो कश्मीर को भारत का अंग तक नहीं मना !जिस तरह से अपनी नाकामी को छिपाने के लिए उमर अलगाववादी भाषा का प्रयोग कर रहे है , वो निंदा के योग्य है और एक मुख्यमंत्री के इस तरह के बोल सीमा पार को मजबूत और भारत को कमजोर करने का काम करेंगें  ! उमर के साथ -साथ कांग्रेस भी राष्ट्रीय एकता रैली को घाटी में नहीं पहुचना देना चाहती ! दोनों ही तिरंगे से घाटी का अमन  चैन फिर छीन जाने का डर बता रहे है ! लेकिन अमन चैन से ज्यादा ये डर मुझे उनकी सत्ता पर आच आने का महसूस होता है !
                                              सरकार ने भारतीय जनता युवा मोर्चे के कार्यकर्ताओं को लाल चौक से करीब ९० किलोमीटर पहले  ही रोकने की तैयारी कर रही है ! इससे पहले १९९२ में भाजपा ने मुरली मनोहर जोशी की अगुवाई में कन्याकुमारी से  श्रीनगर तक एकता  यात्रा निकल कर लाल चौक पर तिरंगा फहराया था ! १८ साल बाद फिर एक बार भाजपा को लाल चौक की याद आई है ! जिसकी शुरुआत कोलकाता से हो चुकी है और इस बार अगुवाई कर रहे है भारतीय जनता युवा मोर्चे के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर , जो एक यूथ आइकन भी है !
                            आज इसके  बारे में मैं अपने एक मुस्लिम मित्र से बात कर रहा था की भैया भाजपा ने जो लाल चौक पर तिरंगा फहराने का जो संकल्प लिया है क्या वो सही है ! मुझे उनकी बात सुनकर बहुत ही अच्छा लगा जब उन्होंने कहा कि हाँ बिलकुल सही है और भाजपा के इस कदम का साथ देते हुए वहां  कि जनता को भी तिरंगा फहराना चाहिए ! काश ऐसा हो पता , काश ऐसा ही हो , असी ही कुछ बाते मेरे दिमाग में आये ! और साथ में कुछ दिन पहले अलगवाद की आग में जिस तरह  से घाटी  जली उसकी तस्वीर !किस तरह से खिलोनों  से खेलने वाले बच्चे   हाथों  में पत्थर लिए  सुरक्षाकर्मियों की गोली के सामने सीना तान के खड़े! मंजर ऐसा की रोंगटें खड़े करदे !  सीमा पार बैठा पाकिस्तान अलगवाद की आग लगाकर किस तरह से घी डाल रहा था और कैसे आग हर  दिन विकराल रूप धारण कर रही थी ! जिसे हम जन्नत कहते है , उसकी फिजा में आज जन्नत जैसा कुछ भी नज़र नहीं आता !  १८ साल बाद ही सही , एक ऐसा कदम ,मेरे विचार  से जिसका हर भारतीय को जोरदार स्वागत करना चाहियें और वो भी  डंके की चोट पर  ! आखिर हम सब कन्याकुमारी से लेकर  कश्मीर तक सब भारतीय है !
                                   अब  भाजपा के युवा कार्यकर्ताओं ने ही सही जब ये कदम उठा ही लिया है , उमर अब्दुल्ला को भी तिरंगा फहराने से रोकने के बजाय, उन लोगों को रोकने के लिए पुख्ता इंतजाम करने चाहिए ,जो हमारे देश में रहते है , खाते है और सोते है लेकिन गुणगान कही ओर का गाते  है ! उमर को उन्हें रोकना चाहिए जो हमारे देश में पाकिस्तान का झंडा लगाते है , क्या उमर का , दिल्ली कि कुर्सियों पर बैठे राजनेताओं का खून जम गया है !  भारत के अन्य राज्यों की तरह कश्मीर भी अभिन्न अंग है! फिर हमे हमारे अपने देश में ,अपने देश का झंडा फहराने से रोकना लोकतंत्र का मुखौल   उड़ाना है और साथ ही भारत माता का भी अपमान करना !   हमें  एक दूसरे की टांग खीचने की आदत को दरकिनार कर , भाजपा के साथ सभी राजनीतिक दलों को  मिलकर अपने देश का झंडा लाल चौक पर फहराकर सीमा पार वालों को अपनी एकता का परिचय देना चाहियें और रोकने वालों को करार जवाब भी  ! देश में जितने भी युवा नेता है चाहे वो राहुल गाँधी हों या वरुण या उमर अब्दुल्ला ! जितने भी चेहरे है , सबको २६ जनवरी को लाल चौक पर एक साथ , एक श्रंखला में खड़े होकर तिरंगे को सलामी देनी चाहिए जिससे भरी सर्दी में अलगाववादियों को पसीने आ जाये ! क्योंकि  ये ध्वजा  भाजपा का नही बल्कि राष्ट्र का है ! आखिर उमर जितना दिमाग तिरंगा को रोकने के लिए लगा रहे है , उतने में तो तिरंगा फहराया जायेगा! लेकिन ये भारत है , अगर हर बात पर बवाल ना मचे और हर बात पर सियासी रोटियां  ना पके , तो   लोगों को खाना  हज़म नहीं होता  ! 

Thursday, January 20, 2011

क्या कांग्रेस युवराज का बंधा हाथ खुलेगा ?

                                     मिशन २०१२ ? राहुल गाँधी का यूपी में सरकार बनाने का सपना ! जिस सपने के बारे में सोचकर मेरे जैसे पता नहीं कितने लोगों के दिमाग में एक बेतुका सा सवाल आता होगा कि क्या राहुल के मिशन पूरा होगा, और अगर होगा तो क्यों होगा?  कांग्रेस पार्टी पर हमेशा से ही नेहरु -गाँधी परिवार का ही वर्चस्व रहा  है ! कांगेस अध्यक्ष पद पर  पंडित मोतीलाल नेहरु ,जवाहर लाल नेहरु, इंदिरा गाँधी ,राजीव गाँधी रह चुके है  ! आज राहुल गाँधी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और उनकी माता सोनिया गाँधी अध्यक्ष पद पर काबिज है , जिनकी लगातार चौथी बार इस पद पर ताजपोशी हुई है !यही कारण है जिसकी वजह से कांग्रेस को एक ही परिवार की पार्टी कहा जाता है !  बिहार में कांग्रेस कि जो गत हुई उससे हर कोई परिचित है ! यूथ आइकन राहुल गाँधी ने अपनी पूरी ताक़त झोंक दी थी  लेकिन नतीजा लगभग नगन्य ही रहा ! अब राहुल गाँधी यूपी में अपनी जमीन मजबूत करने में लगे है ! हालाँकि २००९  में हुए लोकसभा चुनाव में यूपी में कांग्रेस को उम्मीद से ज्यादा सीटे मिली , लेकिन इस बात में कोई संकोच नहीं है कि  लोकसभा और विधान सभा के चुनाव में वोटर कि मानसिकता अलग होती है! उत्तराखंड भाजपा शासित प्रदेश है लेकिन २००९ में एक भी सीट  भाजपा को नसीब नहीं हुई और सभी सीटों पर कांग्रेस का कब्ज़ा रहा ! अपितु  इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि राहुल के राजनीति  में पड़े क़दमों ने कांग्रेस पार्टी के लिए संजीवनी बूटी का काम किया ! २००४ में राहुल गाँधी ने अपना पहला चुनाव लड़ा और एक लम्बे समय के बाद कांग्रेस को सत्ता नसीब हुई ! उसके बाद 2007 में यूपी में  हुए विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को ४२५ में से मात्र २२ सीटों पर ही संतोष करना पड़ा !  लेकिन २००९ लोकसभा चुनाव  कांग्रेस ने अकेले दम पर ८० में से २१ पर विजयी झंडा गाड़ा !  २००९ में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए राहुल ने  कहा था कि मेरे पिता जी दोनों हाथो से सेवा करते थे लेकिन  मेरा एक हाथ बंधा है ! जिसका कारण यह है कि उत्तर प्रदेश में गैर कांग्रेसी सरकार है जो विकास कार्यों में सहयोग तो करती ही नहीं बल्कि , बाधा भी पैदा करती है ! उन्होंने जनता से यूपी  में भी कांग्रेस कि सरकार लाने कि अपील कि थी ! राहुल यूपी में ताबड़तोड़ दौरे कर रहे है ! बिना किसी प्रोग्राम  के  कही भी पहुंच जाते है ! चाहे टप्पल में किसानों का आन्दोलन हो या कानपुर में बलात्कार के बाद मौत का शिकार हुई दिव्या की माँ से मुलाकात कर हर संभव मदद का आश्वासन  !  लेकिन सबके सामने  सूबे में गैर कांग्रेसी सरकार के कारण मज़बूरी का रोना जरुर रोते है ! 
                           
                     राहुल का यूपी  में दलितों की चोखटों पर पहुंचने का सिलसिला लगातार जरी है ! उनके घर  खाना खा और सो कर , मायावती के सॉलिड कहे जाने वाले वोट बैंक में सेंध लगाने कि हाड तोड़ मेहनत कर रहे है ! कहा जाता है कि बसपा के टिकट के साथ तो २०-२५ हज़ार वोटों कि गारंटी मिलती है , मतलब दलित वोट  ! भले ही राहुल के ये कदम कितने ही राजनीतिक
क्यों ना हों ,भले ही मायावती ने राहुल पर दलितों से मिलने के बाद स्पेशल साबुन से नहाने के आरोप लगाया हो,  लेकिन ये कदम एक विश्वास पैदा करने वाले तो है ही ! और राहुल गाँधी जिस तरह से अपनी सुरक्षा की परवाह किये बिना जनता के बीच जाकर  जिस अंदाज में मिलते है , वो अंदाज तो किसी को भी अपना बना सकता है !  आगामी चुनाव में राहुल ३० फीसदी टिकट युवाओं को देने कि बात कर रहे है ! युवाओं के जोश और राहुल की  भोली सूरत में झलकते  अपनेपन  का जादू चला तो  पंजा हाथी और साईकिल की गति पर पूर्ण विराम  ही लगा सकता है  ! राहुल गाँधी ने कई बार अपनी वाणी से ऐसे बोल कहे जिससे विवाद पैदा हुआ और उन्हें विपक्ष के तीखे कटाक्ष का सामना करना पड़ा ! जैसे मेरी दादी ने पाकिस्तान के टुकड़े कर दिए,नेहरू-गांधी परिवार का कोई आदमी अगर सत्ता में होता तो बाबरी मस्जिद नहीं गिरती, आर एस एस और सिम्मी में कोई फर्क नहीं है , और हाल ही में विकिलीक्स ने भी राहुल गाँधी को अपनी चपेट में लिया , जिसमे राहुल ने अमेरिकी राजदूत टिमोथी जे. रोमर  से कहा था की देश को सबसे ज्यादा खतरा भगवा आतंकवाद  से है ! इन बयानों के बाद बीजेपी नेताओं ने तो राहुल को  नासमझ ,अपरिपक्व बताते हुए   राजनीति सीखने की सलाह दी !  

                                               २०१० में जिस तरह बड़े -बड़े घोटालें उजागर हुए , उसका नुकसान कही कांग्रेस पार्टी को २०१४ से पहले २०१२ में  उठाना पड़ सकता है ! विपक्ष कोई ऐसा मुद्दा अपने हाथ से नहीं जाना देना चाहता जिससे वह सरकार को घेर सके, चाहे वह घोटालें हो या कमर तोड़ महंगाई ! लेकिन जनता भी करे तो क्या करे , जनता के पास बिहार की तरह ना तो कोई विकल्प केंद्र में है और ना ही यूपी में कोई ऐसा चेहरा है ! मायावती को जिस तरह से यूपी की जनता ने पूर्ण बहुमत  दिया था , लेकिन जनता की कसौटी  पर मायावती खरी नहीं उतर पाई और विकास कर्यों के नाम पर मूर्ति लगवाने पर ही अधिक ध्यान दिया ! मुलायम सिंह से भी मुस्लिम अभी जुड़ा प्रतीत नहीं होता है ! सूबे के चुनाव से पहले केन्द्रीय राज्य मंत्री और फर्रुखाबाद से सांसद  सलमान  खुर्शीद को काबिना मंत्री बनाना , कही राहुल का मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाकर सपना साकार करने का प्रयास तो नहीं है ?  अगर राहुल मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण अपनी ओर करने में कामयाब हुआ तो मुलायम सिंह का यूपी में बिहार के लालू वाला हाल हो जायेगा ! और मुख्य मुकबला मैडम माया और युवराज के बीच होगा ! लेकिन अगर आजम खान और मुल्ला मुलायम  का जादू चला तो राहुल गाँधी को फिर से पैवेलियन  लौटना होगा! 

Monday, January 17, 2011

विचार क्रांति, राजनीति से हुई गुम ......


जिसकी लाठी उसकी भैंस की तरह  जिसकी कुर्सी उसके विचार
एक जमाना था जब अधिकांश राजनेताओं में कुछ विचारधारा हुआ करती थी! जिस विचार धारा के लिए वो अपना पूरा जीवन अर्पण कर देते थे ! लेकिन आज हर कोई अपना उल्लू सीधा करने में लगा हुआ है ! अब तो जब चाहो कोई भी विचार धारा अपना ग्रहण कर लों , कोई फर्क नहीं पड़ता ! आज नेता विचार धारा नहीं कुर्सी को देखते है कि किस पार्टी में मजबूत कुर्सी उनके हाथ आ सकती  है ! उसी कुर्सी के लालच का जीता - जागता उदारहण अगर कल्याण सिंह का मुलायम सिंह के साथ जाने का किया जाये तो गलत नहीं होगा ! दोनों कि विचार धारा हमेशा से ही एक दूसरे कि विरोधी रही लेकिन फिर गठजोड़ कर कुछ दिन तो चला ही  लिए ! इस दौरान कल्याण सिंह ने अपनी भगवा विचार धारा का त्याग सा कर दिया था लेकिन मुलायम सिंह ने जैसे ही कल्याण सिंह का हाथ छोड़ा एक दम फिर कल्याण सिंह के दिमाग में मंदिर कि घंटिया बजने लगी !
                                                    अब अमर सिंह जो राजनीतिक पार्टी  से ज्यादा फिल्मों की पार्टियों आदि में नज़र आते रहे है ! कभी मुलायम और अमर कि जोड़ी जय और वीरू से काम नहीं थी लेकिन आज वो सौदागर के दिलीप और राजकुमार कि तरह आमने सामने है ! अमर मुलायम  सिंह पर आय दिन निशाना साधते रहते है ! जब तक अमर सपा में रहे तो सब ठीक था लेकिन बात बिगड़ी तो मुलायम सिंह में इतने खोट गिना रहे है कि गिनना दूभर है !जरा सोचिये अगर मुलायम  गलत थे तो इतने साल तक उन्होंने गलत आदमी का साथ क्यों दिया ?! अमर मुलायम को जेल तक कि सैर कराने तक का ख्वाब बुन रहे है लेकिन मुलायम सिंह के हर काम में अमर की हिस्सेदारी से कौन  वाकिफ  नहीं है ! 
                      जिस विचार धाराओं से तमाम राजनितिक दलों का निर्माण किया गया था आज सत्ता को नज़र भर देखने के लिया उनका मतलब ही बदल गया है !अगर आज गठबंधन कि सरकार दो कदम भी मुश्किल से चल पाती है तो उसका कारण विचार धारा का मिलन नहीं बल्कि कुर्सी कि नापसंदगी होता है ! आज कोई भी व्यक्ति नेता बनता है इस और कुछ विचार करता है तो  देश के विकास के लिए नहीं बल्कि मात्र अपने और अपने परिवार के लिए ! नेताओं के विकास के चक्कर में जनता का कुछ भला हो जाये तो सही नहीं तो चुनाव तक जय राम जी कि ! चुनाव के समय कुछ नए वादे ,कुछ नए ख्याली पुलाव जनता के मन में पका देते है ! आज वोट बैंक कि राजनीति समाज के असल मुद्दों पर इस कदर हावी है कि अधिकांश  योजनायें कागजों में ही दम तोड़ रही है ! सरकार की टांग खिचाई करने के लिए विपक्ष ने तो आज कल संसद ही ठप करके रखी है !   राजनीति का हो रहा व्यापारीकरण देश और समाज के लिए खतरे कि घंटी है लेकिन कीड़ा एक पेड़ पर नहीं पूरे बाग में ही लगा है !
           अगर आज़ादी के समय की और गौर किया जाये तो  प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र शर्मा ने जवारलाल नेहरु को इस पद  के लिए इंकार कर दिया था लेकिन सरदार पटेल ने जिद्द कर उन्हें देश के प्रथम राष्ट्रपति  बनवा इतिहास में उनका नामे दर्ज कराया ! दरसल जवारलाल राजेंद्र शर्मा को राष्ट्रपति बनाने के पक्ष में नहीं थे वो दक्षिण पंथी विचार वाले राज गोपाल चारी को राष्ट्रपति बनवाना  चाहते थे ! जब जवारलाल नेहरु ने राजेंद्र शर्मा से पूछा क्या आप राष्ट्रपति पद  के उम्मीदवार है तो उन्होंने मना कर दिया और इस बात को नेहरु जी कागज पर लिखा लिया! उन्होंने केवल इसलिए मना कर दिया की पता होने के बावजूद नेहरु जी उनसे सवाल किया और अपने मुह से वो इस बात को नहीं कह सके की वो भी उम्मीदवार है ! १९४२ में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए सरदार पटेल का नाम तय किया गया तो उन्होंने मना कर दिया ! उनके मना करने के बाद जवाहर लाल नेहरु को अध्यक्ष बनाया गया ! और  आज  ग्राम प्रधान या किसी चुनावी टिकट तक के लिए भाई भाई की इज्ज़त उतरने में तनिक भी देर  नहीं लगाता! आज ऐसी   सोच वाले नेताओं की बहुत  सख्त जरुरत है जो चरमरायी राजनीति और मौकापरस्त नेताओं से देश को उबार सके ! वो तो वापस नहीं आगे आ सकते , युवाओं  को ही राजनीति में
 आगे आकर फिर से एक विचार क्रांति लानी होगी !

Friday, January 14, 2011

कुछ सकारात्मक परिवर्तन...पत्रकारिता फिर चैम्पियन

                                  अगर कहा जाये पत्रकारिता का स्वरूप बदल रहा है , तो गलत नहीं होगा ! एक और जहा सब कुछ आधुनिक  हो रहा है  वहीँ  पत्रकारिता एक गलत दिशा में लगातार बढती जा रही है लेकिन हर कोई एक दूसरे पर आरोप मढ़ने के अलावा कोई ठोस कदम उठाता नजर नहीं आ रहा ! प्रिंट मीडिया के बारे में लोगों में ये धारणा घर कर गई है कि अख़बार में तो सेलरी कम ही मिलती है , इन्हें तो बाहर से पैसा मिलता है !एक दिन मेरे एक बड़े भाई ने मुझसे पूछा कि हाँ भाई अब तो पैसा  बंधा आने लगा होगा तो सच मानो मुझे बहुत शर्म आई ! मैंने ऐसे बहुत से पत्रकार देखें है जो दों मूली और दों गाज़र पर ही बिक जाते है ! पत्रकारों पर अब जनता विश्वास करने को तैयार नहीं है ! एक जगह पढ़ा था कि ख़बरों के रंगों में किसी पार्टी का रंग नहीं होना चहिये! इस बात में कोई दो राय नही है कि खबर का मज़ा तभी आता है जब खबर पूरी तरह से निष्पक्ष हो ! लेकिन विज्ञापन कि चसक ने तो खबरों को काफी पीछे छोड़ दिया है जिससे ये  चौथा खंभा अब खासा दरक गया है। ! किसी भी खबर को विज्ञापन के लिए काट दिया जाता है ! लेकिन खबर के लिए कभी भी विज्ञापन छोटा तक नहीं किया जाता ! विज्ञापन के बिना अख़बार नहीं चलाया जा सकता लेकिन विज्ञापन को खबर कि जगह प्राथमिकता देना क्या ऊचित है ! लेकिन  विज्ञापन का जिन्न पत्रकारिता के  पतन का जिम्मेवार नहीं है ! इसका मुख्य कारण तो पत्रकारों का  कार्पोरेटर बन जाना है ! साफ़ शब्दों में कहा जाये तो दलाली करना ! एक पत्रकार कि कमाई को कोई भी सही नज़रों से नहीं देखता इसका यही कारण है कि इस पवित्र पेशे की के आड़ में अवैध उगाही और दलाली  करना ! ऐसे दलाल पत्रकारों के खिलाफ ठोस कदम उठाने की जरुरत है ! विज्ञापन तो अख़बार की जरुरत है लेकिन क्या अख़बार की आड़ में दलाली करते पत्रकार भी ? 
               चुनावों में खबर उसकी ही छपती है जो विज्ञापन और पैसा  देता है ! पहले ही ठेका ले लिया जाता है पूरे चुनाव का ! फिर आपकी मर्जी जैसी चाहे खबर लगवाओ ! जिसे पेड न्यूज़ का नाम भी दिया गया है !   इसे ख़त्म करने के लिए बहुत से बड़े पत्रकारों ने आवाज भी उठाई लेकिन उनकी  आवाज दब गई ! बिना विज्ञापन के अख़बार चला पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, लेकिन ख़बरों से समझोता क्या ऊचित है ?    
                         आज मैं एक बहुत बड़े अख़बार के पत्रकार रह चुके एक व्यक्ति  कि बात सुन सन्न रह गया ! उनका कहना था कि अगर पत्रकार ही रहता तो हथ में कटोरा आ जाता!  सही टाइम  पर अपना व्यपार कर लिया नहीं तो आज इस फिएल्ड में तो बस शोषण ही होता है ! सच कहों तो मुझे उनकी बात  सुनकर पसीना आ रहा था ! वो पसीना में एक डर छुपा था , मैं पत्रकारिता  में  ही अपने आप को साबित करना चाहता हूँ ! लेकिन उनकी बात सुनकर मेरा विश्वास डगमगाया  तो नही लेकिन मन एक डर जरुर घर कर गया ! उन्होंने कहा कि देहात में पत्रकारों को अख़बार कि तरफ से मात्र खर्चा पानी ही मिलता है !यही कारण है कि ऐसे  पत्रकार अख़बार को ढाल और कलम को हथियार बना कर इधर उधर से पैसा कमाना शुरू कर देते है !उनकी बातों सच्चाई के साथ साथ एक टीस भी महसूस हुई !                         मैंने बहुत बार सुना है कि ये फिल्ड बाहर से जितना साफ नजर आता है ,अंदर से उतना ही गन्दा है !आखिर ऐसा क्या हो गया कि दूसरों कि खामियों को उजागर करने वाले अपनी खामियों को क्यों दूर नहीं कर पा रहे है ? आज इस विभाग में कुछ परिवर्तन करने की आवश्यकता है , जिससे एक पत्रकार बस पत्रकार ही रहे दलाल न बने !