Friday, January 14, 2011

धन और बल, राजनीति का बस यही नाम

उत्तर प्रदेश में हाल ही में हुए पंचायत चुनाव के बाद एक बार फिर प्रदेश सरकार निकाय चुनावों में भी वही प्रणाली लागू करने वाली है जिसने लोकतंत्र को झकझोर कर रख दिया था! जिस तरह से जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुख का चुनाव सदस्यों से कराया जाता है , उसी तरह से निकाय चुनावों में भी सदस्यों से ही अध्यक्ष का चुनाव कराने की तैयारी में है ! पंचायत चुनाव में सदस्यों की खरीद फरोख्त किसी से छिपी नहीं है साथ ही सत्ताधारी विधयाकों की गुंडागर्दी भी ! धनबल और बाहुबल के आधार पर हो रहे चुनावों में ईमानदार नेताओं की भागीधारी में इस कदर गिरावट आ रही कि लोकतंत्र खून के आंसू रो रहा है !जिला परिषद् के चुनावों में 10 से 12  करोड़ रुपया का खर्चा हुआ , आने वाले आम चुनाव में क्या होने वाला है इसका अंदाजा तो लगाया जा सकता है   ! वर्तमान सरकार  खुद को चरम पर रखने के हर हथकंडा अपना रही है! विधान सभा चुनाव से पहले होने जा रहे निकाय चुनाव में बसपा कही भी कम नहीं रहना चाहती ! उसे डर कही अगर उसके पतन की बात जनता में फ़ैल गयी तो २०१२ में विपक्ष में बैठना न पड़ जाये ! उम्मीद जताई जा रही है की सरकार वक़्त से पहले ही निकाय और विधान सभा चुनाव करवाने का मन बना रही है ! सूत्रों के अनुसार निकाय चुनाव से पहले विधान सभा चुनाव भी कराए जा सकते है ! बसपा ने अपनी अधिकतर सीटों के उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है!
                                               अपराध मुक्त सरकार का दावा करने वाली मायावती ने ही बीते लोक सभा चुनाव में सबसे ज्यादा अपराधियों को चुनाव मैदान में उतारा था लेकिन सूबे के चुनाव आते आते मायावती ने जनता को भुनाने के लिए कई अपराधिक छवि वाले लोगों को पार्टी से निकाल दिया है ! लेकिन जितनी  भोली  मायावती जनता को समझते है क्या जनता वास्तव में उतनी ही  भोली है ! इसका जवाब अभी देना जल्दबाजी होगी लेकिन २०१२ में होने वाले चुनाव में इसका जवाब पूरे प्रमाण के साथ मिल जायेगा! लेकिन एक बात स्पष्ट है कि अगर समय रहते धन और बल कि राजनीति पर लगाम न कसी गई तो कहीं राजनीति  का बचा- कुचा अस्तित्व ही समाप्त न हो जाये ! समय रहते ठोस कदम उठाने कि जरुरत है ! जिससे ये लाइन सच  साबित न हो !
जिसके पास नोट होगा, उसी का अब तो वोट होगा 
जिसके पास बल होगा, उसी का अब तो कल होगा   

    
            

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